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भक्तमालमें वर्णित भगवद्भक्तोंका पावन चरित- परमभक्ता श्रीलालमतीजी bhaktmal katha lyrics

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  भक्तमालमें वर्णित भगवद्भक्तोंका पावन चरित परमभक्ता श्रीलालमतीजी परमभक्ता  श्रीलालमतीजीने गौर-श्याम श्रीराधाकृष्ण, श्रीयमुनाजी तथा उसके तटपर विराजमान कुंजभवनोंसे प्रेम किया। इनके हृदयमें वंशीवट, व्रजरज, गोकुल, व्रजवासी रसिक सन्त, श्रीमथुरापुरी एवं श्रीगिरिराज गोवर्धनके प्रति अपार प्रीति थी।  इस चतूर व्रजभक्ता देवीने श्रीवन्दावनधाममें अखण्डवास किया। इस प्रकार इन्होंने दुर्लभ मानवदेहका अलभ्य लाभ (हरिभक्ति) प्राप्त किया ॥  श्रीलालमतीजीके विषयमें विशेष विवरण इस प्रकार है श्रीलालमतीजीकी  व्रज-वृन्दावनमें बड़ी निष्ठा थी। उन्होंने यमुनाकुंज आदि अष्ट स्थानोंमें प्रेम किया, वे इनकी यात्रा करती रहती थीं।  शरीरके क्षीण होनेपर भी दर्शन-यात्रा, सेवा आदिमें शिथिलता नहीं आयी। दर्शनोंकी तीव्र उत्कण्ठा देखकर प्रभुने इन्हें स्वप्नमें दर्शन दिया और कहा कि प्रात:काल श्रीयमुनाकुंजमें आओ, वहाँ तुम्हें प्रत्यक्ष दर्शन होंगे।  तुम्हारा शरीर शिथिल हो गया है, अतः यात्रा बन्द करके श्रीवृन्दावनमें ही वास करो। स्वप्नका स्मरणकर आपके मनमें बड़ा मोद हुआ। प्रातः आपने अपनी दासीके साथ ...

मोह का महल ढहेगा ही maya moh nirakaran-bhagwat Pravchan hindi

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||मोह का महल ढहेगा ही ||  ( महल खंडहर ) एक सच्ची घटना है- नाम और स्थान नहीं बतलाना है, उसकी आवश्यकता भी नहीं है | एक विद्वान सन्यासी मंडलेश्वर थे उनकी बड़ी अभिलाषा थी गंगा किनारे आश्रम बनवाने की | बड़े परिश्रम से कई वर्ष की चिंता और चेष्टाके परिणाम स्वरूप द्रव्य एकत्र हुआ | भूमि ली गई, भवन बनने लगा विशाल भव्य भवन बना आश्रम का और उसके गृह प्रवेश का भंडारा भी बड़े उत्साह से हुआ | सैकड़ों साधुओं ने भोजन किया,  भंडारे की झूठी पत्तलें फेंकी नहीं जा सकी थी, जिस चूल्हे पर उस दिन भोजन बना था, उसकी अग्नि बुझी नहीं थी | गृह प्रवेश के दूसरे दिन प्रभात का सूर्य स्वामी जी ने नहीं देखा उसी रात्रि उनका परलोक वास हो गया | यह कोई एक घटना हो, ऐसी तो कोई बात नहीं है | ऐसी घटनाएं होती रहती हैं | हमें इसे देखकर भी ना देखें------ कौड़ी कौड़ी महल बनाया लोग कहे घर मेरा | ना घर मेरा ना घर तेरा चिड़िया रैन बसेरा || यह संतवाणी जिनकी सत्य है यह कहना नहीं होगा | जिसे हम अपना भवन कहते हैं क्या वह हमारा ही भवन है ? जितनी आसक्ती, जितनी ममता से हम उसे अपना भवन मानते हैं, उतनी ही आसक्ती...

भगवद्भक्ति bhagwan ki bhakti in hindi

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भगवद्भक्ति bhagwan ki bhakti in hindi जिसने मन, वाणी और क्रियाद्वारा श्रीहरिकी भक्ति की है, उसने बाजी मार ली, उसने विजय प्राप्त कर ली, उसकी निश्चय ही जीत हो गयी-इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। सम्पूर्ण देवेश्वरोंके भी ईश्वर भगवान् श्रीहरिकी ही भलीभाँति आराधना करनी चाहिये । हरिनामरूपी महामन्त्रोंके द्वारा पापरूपी पिशाचोंका समुदाय नष्ट हो जाता है। एक बार भी श्रीहरिकी प्रदक्षिणा करके मनुष्य शुद्ध हो जाते हैं तथा सम्पूर्ण तीथों में स्नान करनेका जो फल होता है, उसे प्राप्त कर लेते हैं—इसमें तनिक भी संदेह नहीं है । मनुष्य श्रीहरिकी प्रतिमाका दर्शन करके सब तीर्थोंका फल प्राप्त करता है तथा विष्णुके उत्तम नामका जप करके सम्पूर्ण मन्त्रोंके जपका फल पा लेता है । द्विजवरो ! भगवान् विष्णुके प्रसादस्वरूप तुलसीदलको सूंघकर मनुष्य यमराजके प्रचण्ड एवं विकराल मुखका दर्शन नहीं करता । एक बार भी श्रीकृष्णको प्रणाम करनेवाला मनुष्य पुनः माताके स्तनोंका दूध नहीं पीता उसका दूसरा जन्म नहीं होता ।  जिन पुरुषोंका चित्त श्रीहरिके चरणोंमें लगा है, उन्हें प्रतिदिन मेरा बारंबार नमस्कार है । पुल्कस, श्...

bhagwat katha in hindi ,-22

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 bhagwat katha in hindi ,भाग-22 जिह्वां क्वचित् संदशति स्वदद्भिस्तद्वेदनायां कतमाय कुप्येत् ।  (भा.मा. 11/23/51) यदङ्गमङ्गेन निहन्यते क्वचित् क्रुध्येत कस्मै पुरुषः स्वदेहे ॥  (भा.मा. 11/23/52)  किस पर क्रोध करें, ये ज्ञान हो जाने से संत अजातशत्रु हो जाता है। वह किसी से वैर नहीं करता। क्योंकि, सीय राममय सब जग जानि ।  करहु प्रणाम जोरि जुग पानी ॥  (रामचरितमानस 1/8/1)  कपिल भगवान् कहते हैं, माँ ! ऐसे संतों के संग में रहने से सतां प्रसंगान्मम वीर्यसंविदो भवन्ति हत्कर्णरसायनाः कथाः । तज्जोषणादाश्वपवर्गवर्त्मनि श्रद्धा रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति ॥ (भा. 3/25/25)  उन संतों के बीच में बैठोगे, तो चौबीसों घंटे वह मेरी महिमा सुनायेंगे मेरी मधुर-मधुर कथा सुनायेंगे। नाम की महिमा, रूप की महिमा, स्वभाव की महिमा, प्रभाव की महिमा, भगवान् की कृपालुता की महिमा, भगवान् के करुणामय स्वभाव की महिमा, इतनी सुनायेंगे कि सुन-सुनकर आप अपने आप ही दीवाने हो जाओगे। श्रद्धा रतिः भक्तिः' - अपने आप भगवान् की महिमा सुनकर श्रद्धा उत्पन्न होगी, फिर धीरे-धीरे...

bhagwat katha in hindi -21

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sampurna bhagwat katha in hindi ,भाग-21 एक दिन देवहूति माँ अपने पुत्र के पास आई और बोली, बेटा! निर्विण्णा नितरां भूमन्नसदिन्द्रियतर्षणात् । येन सम्भाव्यमानेन प्रपन्नान्धं तमः प्रभो ॥ (भा. 3/25/7)   माता देवहूति पूछती हैं, हे प्रभो! संसार में जितना सुख मैंने भोगा, इतने सुख की कोई स्त्री कल्पना भी नहीं कर सकती भोगना तो दूर रहा। हर प्रकार की अनुकूलता, हर प्रकार का वैभव-मायके में मैं राजकुमारी बनकर ठाठ से रही। ससुराल में भी कर्दम-जैसे परमयोगी संत पति मिले, कामद विमान में दिव्य भोगों का सेवन कराया। परन्तु इतना सब पाने के बाद भी मेरी आत्मा अतृप्त है, मेरा मन अभी भी असंतुष्ट है। बेटा! आज मैं तुझे केवल अपना बेटा नहीं समझ रही। सुना है तू तो साक्षात् भगवान् है, ब्रह्मज्ञान सम्पन्न है। मैं चाहती हूँ कि अपने ज्ञान का खड्ग उठाकर मेरे अज्ञान के वृक्ष को जड़ सहित नष्ट कर दो। मैं तुम्हारी शरण में हूँ। (भा. 3/25/11)  कपिल भगवान् ने आठ अध्यायों में बड़ा ही अद्भुत सांख्ययोग का उपदेश दिया। इन आठ अध्यायों को कपिलाष्टाध्यायी कहते हैं। कपिल भगवान् कहते हैं, माँ ! संसार में...

sampurna bhagwat katha in hindi -19

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sampurna bhagwat katha in hindi भाग-19 ,part-19 नाहं तथादिम यजमानहविर्विताने श्च्योतद्धृतप्लुतमदन्हुतभुङ्मुखेन ।  यद्ब्राह्यणस्य मुखतश्चरतोऽनुघासं तुष्टस्य मय्यवहितैर्निजकर्मपाकैः ॥  (भा. 3/16/8) भगवान् कहते हैं, वैसे तो ये दोनों ही मुख मेरे हैं।  परन्तु दोनों में जितना कि ब्राह्मण मुख से पाकर मैं तप्त होता हूँ, इतना अग्नि के स्वाहाकार से प्रसन्न नहीं होता। स्पष्ट भगवान् ने कह दिया, घी से लबलवाया हुआ मालपुआ जब ब्राह्मण के मुख में जाता है, तो उसकी तृप्ति को देखकर मैं गद्गद् हो जाता हूँ, वह मेरा प्रत्यक्ष मुख है। बड़ी प्रशंसा भगवान् ने यहाँ पर ब्राह्मणों के लिये की। और सनकादियों को सम्मानपूर्वक नमन करके विदा किया। सनकादियों के शाप से वे ही भगवान् के पार्षद जय और विजय आज दिति माँ के गर्भ में आ चके हैं। ये सारा रहस्य ब्रह्माजी ने देवताओं को बताते हुए कहा, आप लोग घबड़ाइयेगा नहीं, भगवान् नारायण कृपा करेंगे। समय आने पर उनका उद्धार करेंगे। बाकि उनका सामना और कोई नहीं करने वाला। देवता बेचारे काल-प्रतीक्षा करने लगे। सौ वर्षों बाद दिति ने दो पुत्रों को जन्म दिया, ...

bhagwat katha in hindi भाग-20

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sampurna bhagwat katha in hindi ,भाग-20 कपिलोपाख्यान श्रीमद्भागवत में मनु-शतरूपा की तीन बेटियों का वंश पहले सुनाया गया, बेटों की बात बाद में की गई है। तीनों बेटियों में मझली बेटी देवहूति का विवाह कर्दमजी के साथ में हुआ। कर्दमजी ने विवाह के समय एक शर्त रखी कि एक संतान होते ही मैं विरक्त हो जाऊँगा। देवहूति ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया। हर्षोल्लासपूर्वक विवाह सम्पन्न हुआ। पुत्री से विदा लेकर माता-पिता तो अपनी नगरी को लौट गये, पर शादी होते ही कर्दमजी समाधि लगाकर बैठ गये। कई वर्षों तक अखण्ड समाधि लगी रही, तो देवहूति अपना सारा श्रृंगार उतारकर पति की सेवा में समर्पित बनी रही। कई वर्षों के बाद जब समाधि खुली कर्दमजी ने देवहूति को देखा। देवहूतिजी को देखकर कदमजी तो गद्गद् हो गये। तुष्टोऽहमद्य तव मानवि मानदायाः शुश्रूषया परमया परया च भक्त्या । यो देहिनामयमतीव सुहृत्स्वदेहो नावेक्षितः समुचितः क्षपितुं मदर्थे ॥  (भा. 3/23/7)  कर्दमजी बोले, हे मानवी! अरी मनुपुत्री! हम तेरी सेवा से बड़े प्रसन्न हुए। संसार में व्यक्ति को अपना शरीर सबसे ज्यादा प्यारा लगता है। पर तुमने तो म...