bhagwat katha in hindi भाग-20
sampurna bhagwat katha in hindi ,भाग-20

श्रीमद्भागवत में मनु-शतरूपा की तीन बेटियों का वंश पहले सुनाया गया, बेटों की बात बाद में की गई है। तीनों बेटियों में मझली बेटी देवहूति का विवाह कर्दमजी के साथ में हुआ। कर्दमजी ने विवाह के समय एक शर्त रखी कि एक संतान होते ही मैं विरक्त हो जाऊँगा।
देवहूति ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया। हर्षोल्लासपूर्वक विवाह सम्पन्न हुआ। पुत्री से विदा लेकर माता-पिता तो अपनी नगरी को लौट गये, पर शादी होते ही कर्दमजी समाधि लगाकर बैठ गये। कई वर्षों तक अखण्ड समाधि लगी रही, तो देवहूति अपना सारा श्रृंगार उतारकर पति की सेवा में समर्पित बनी रही।
कई वर्षों के बाद जब समाधि खुली कर्दमजी ने देवहूति को देखा। देवहूतिजी को देखकर कदमजी तो गद्गद् हो गये।
तुष्टोऽहमद्य तव मानवि मानदायाः शुश्रूषया परमया परया च भक्त्या ।
यो देहिनामयमतीव सुहृत्स्वदेहो नावेक्षितः समुचितः क्षपितुं मदर्थे ॥
(भा. 3/23/7)
कर्दमजी बोले, हे मानवी! अरी मनुपुत्री! हम तेरी सेवा से बड़े प्रसन्न हुए। संसार में व्यक्ति को अपना शरीर सबसे ज्यादा प्यारा लगता है। पर तुमने तो मेरी सेवा के लिये अपने शरीर का भी कोई ध्यान नहीं रखा? देवी! बोलो क्या चाहती हो? देवहूति ने कहा, महाराज! आप मेरे पति-परमेश्वर हैं।
आपको प्रसन्न रखना ही मेरा परमधर्म है। फिर भी आप कुछ देना चाहते हो, तो हम सद्गृहस्थ बने हैं हमारी एक संतान होनी चाहिये। और मुझे कुछ नहीं चाहिये। कर्दमजी प्रसन्न हो गये और तुरन्त हाथ में जल लिया। संकल्प करके जैसे-ही जल छोड़ा कि एक अद्भुत विमान बनकर तैयार हो गया।
और विमान कैसा कि जो संकल्प के द्वारा ही चलता है, डीजल-पेट्रोल का कोई झंझट नहीं। कामना करो कि अमुक् स्थान चलो! बस संकल्प किया और विमान उड़कर चल दिया। ऐसा अद्भुत विमान आज तक तो कोई वैज्ञानिक बना नहीं सका, लेकिन एक महात्मा ने संकल्पमात्र से तैयार कर दिया।
देवहूति को तो उस विमान में बैठने में घबड़ाहट हो गई। शरीर बहुत गंदा हो चुका था, महीनों से ठीक-से व्यवस्थित स्नान तक नहीं किया, शरीर पर कोई लेपन किया नहीं।कर्दमजी समझ गये,
निमज्ज्यास्मिन् ह्रदे भीरु विमानमिदमारुह
कर्दमजी बोले, जाओ देवी ! पहले सरोवर में स्नान करो। और ज्यों ही सरोवर की ओर बढ़ी कि 'शतानि दश कन्यकाः' एक हजार कन्याएं सरोवर में प्रकट हो गई, जिन्होंने उबटन लगा-लगाकर, देवहूति का स्नान करवाकर श्रृंगार किया। अप्सराओं-जैसा दिव्य देह चमकने लगा।
दोनों दम्पति उस विमान में प्रविष्ट हुये। वर्षों तक विषयों को भोग करते हुए कालान्तर में नौ बेटियों को जन्म दिया। अब एक दिन कर्दमजी सोचने लगे, वाह रेकर्दम! तुम तो फंस गये चक्कर में? शादी के पहले सोच रहे थे कि एक संतान होते ही बाबा बनेंगे और आज देखो! नौ संताने हो गई चलो। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। खिसक लो, नहीं तो दुनियादारी तो बढ़ती ही जायेगी। तुरन्त कर्दमजी खड़े होकर चल दिये।
देवहूति ने चरण पकड़ लिये, कहाँ जा रहे हो महाराज?
कर्दमजी बोले, वचन याद कर लो देवी! एक की जगह नौ संतान हो गई, अब मैं टिकने वाला नहीं। देवहूति ने कहा, महाराज ! ये नौ बेटियाँ हैं।
कर्दमजी बोले, वचन याद कर लो देवी! एक की जगह नौ संतान हो गई, अब मैं टिकने वाला नहीं। देवहूति ने कहा, महाराज ! ये नौ बेटियाँ हैं।
शादी के बाद जब ये सब ससुराल चली जायेंगी, तो बुढ़ापे में मेरा अवलम्ब क्या होगा? कर्दमजी को तुरन्त याद आ गया, अरे! मेरे प्रभु मुझसे बोले थे कि कर्दम ! तुम विवाह करो तो मैं तुम्हारा बेटा बनूँगा। और प्रभु मेरे बेटे बनेंगे, इसी प्रलोभन में तो मैंने विवाह किया था।
सहाहं स्वांशकलया त्वद्वीर्येण महामुने ।
तव क्षेत्रे देवहूत्यां प्रणेष्ये तत्त्वसंहिताम् ॥
(भा. 3/21/32)
ये प्रभु ने मुझे वचन दिया है कि मैं तुम्हारा बेटा बनूँगा। भगवान् का वचन मिथ्या नहीं हो सकता। भगवान् घर में ही यदि बेटा बनकर आने वाले हैं, तो मैं जंगल में जाकर क्या करूँगा? कर्दमजी रुक गये और बोले,
मा खिदो राजपुत्रीत्थमात्मानं प्रत्यनिन्दिते ।
भगवांस्तेऽक्षरो गर्भमदूरात्सम्प्रपत्स्यते ॥
(भा. 3/24/2)
मैं तो भूल ही गया था। तू तो साक्षात् नारायण की जननी बनने वाली है, बिल्कुल खेद मत कर। कर्दमजी रुक गये और अबकी बार देवहूति गर्भवती हुई तो साक्षात् प्रभु ही गर्भ में पधारे। कालान्तर में देवहूति के गर्भ से भगवान् का कपिल रूप में प्राकट्य हुआ।___ कपिल भगवान् के दिव्यदर्शनों के लिये स्वयं विधाता ब्रह्माजी अपने नौ ऋषिपुत्रों के साथ आये। कर्दमजी ने स्वागत करते हुए कहा, भगवन् ! बड़ी कृपा की कि आपके दर्शन हुए। एक निवेदन करना चाहता हूँ। मेरे घर में नौ बेटियाँ और आपके साथ में नौ बेटा - बढ़िया जोड़ा बन जायेगा। न आपको भटकना पड़ेगा, न मुझे।
ब्रह्माजी प्रसन्न हो गये। ब्रह्माजी तो सृष्टि के विस्तार के लिये वैसे ही तैयार थे।
तुरन्त नौ बेटियों का विवाह ऋषिपुत्रों से कर दिया। कला देवी का विवाह मरीचि से, अनसूया का विवाह अत्रि से, अरुन्धति का विवाह वसिष्ठ से, ख्याति का विवाह भृगुजी से, शान्ति का विवाह अथर्वण से, क्रिया का विवाह क्रतु से, तथा हविर्भू का विवाह पुलस्त्य से किया। नौ बेटियों का विवाह करके कर्दमजी ने विदा किया।
___ जब बेटियां ससुराल चली गई, तो कर्दमजी बोले, देवी! बेटियों का दायित्व पूरा हो गया, ससुराल चली गई। बेटा भी हो गया। अब मेरे सारे दायित्व पूरे हो गये, इसलिये अपने राम भी अब चलते हैं अब नहीं टिकेंगे।
तो अबकी बार देवहूतिजी ने रोकने का दुराग्रह नहीं किया और कर्दमजी चले गये।
घर में कितनी भी अनुकूलता हो, परन्तु चतुर्थ चरण में घर की आसक्ति छोड़ ही देना चाहिये। परिवार के लोग डाँटे-फटकारें, तब भागे तो, क्या भागे? अनुकूलता में भी विरक्ति हो, वह सच्चा वैराग्य है। परिस्थिति का वैराग्य ज्यादा टिकाऊ नहीं होता।
कर्दमजी की अनुकूलता तो देखिये कि जिसकी देवहूति-जैसी पत्नी, बेटियाँ अनसूया-जैसी, दामाद भग. वसिष्ठ, आदि जैसे; पुत्र कपिल जैसा - किसी मामले में कोई कमी नहीं ? रहने के लिये सुविधा में कमी हो, खाने पीने में कमी हो, ऐसी भी कोई बात नहीं। कामद विमान, जो कामना करो, जहाँ जाना चाहो, वहीं उड़ाकर ले जाये।
सब कछ है, फिर भी कर्दमजी विरक्त होकर चल दिये। अब तो आश्रम में केवल दो सदस्य माता देवहूति और उनके पुत्र कपिल ही रह गये। sampurna bhagwat katha in hindi ,भाग-20
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