भगवद्भक्ति bhagwan ki bhakti in hindi

भगवद्भक्ति
भगवद्भक्ति bhagwan ki bhakti in hindi
bhagwan ki bhakti in hindi
जिसने मन, वाणी और क्रियाद्वारा श्रीहरिकी भक्ति की है, उसने बाजी मार ली, उसने विजय प्राप्त कर ली, उसकी निश्चय ही जीत हो गयी-इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। सम्पूर्ण देवेश्वरोंके भी ईश्वर भगवान् श्रीहरिकी ही भलीभाँति आराधना करनी चाहिये ।

हरिनामरूपी महामन्त्रोंके द्वारा
पापरूपी पिशाचोंका समुदाय नष्ट हो जाता है। एक बार भी श्रीहरिकी प्रदक्षिणा करके मनुष्य शुद्ध हो जाते हैं तथा सम्पूर्ण तीथों में स्नान करनेका जो फल होता है, उसे प्राप्त कर लेते हैं—इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।

मनुष्य श्रीहरिकी प्रतिमाका दर्शन करके सब तीर्थोंका फल प्राप्त करता है तथा विष्णुके उत्तम नामका जप करके सम्पूर्ण मन्त्रोंके जपका फल पा लेता है ।

द्विजवरो ! भगवान् विष्णुके प्रसादस्वरूप तुलसीदलको सूंघकर मनुष्य यमराजके प्रचण्ड एवं विकराल मुखका दर्शन नहीं करता ।

एक बार भी श्रीकृष्णको प्रणाम करनेवाला मनुष्य पुनः माताके स्तनोंका दूध नहीं पीता उसका दूसरा जन्म नहीं होता । 
जिन पुरुषोंका चित्त श्रीहरिके चरणोंमें लगा है, उन्हें प्रतिदिन मेरा बारंबार नमस्कार है । पुल्कस, श्वपच (चाण्डाल) तथा और भी जो म्लेच्छ जातिके मनुष्य हैं, वे भी यदि एकमात्र श्रीहरिक चरणोंकी सेवामें लगे हों तो वन्दनीय और परम सौभाग्यशाली हैं।

फिर जो पुण्यात्मा ब्राह्मण और राजाप भगवान्के भक्त हो, उनकी तो बात ही क्या है । भगवान श्रीहरिकी भक्ति करके ही मनुष्य गर्भवासका दुःख नही देखता ।

ब्राह्मणो ! भगवान्के सामने उच्चस्वरसे उनके नामोंका कीर्तन करते हुए नृत्य करनेवाला मनुष्य गङ्गा आदि नदियोंके जलकी भाँति समस्त संसारको पवित्र कर देता है।

उस भक्तके दर्शन और स्पर्शसे, उसके साथ वार्तालाप करनेसे तथा उसके प्रति भक्तिभाव रखनेसे मनुष्य ब्रह्महत्या आदि पापोंसे मुक्त हो जाता है—इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

जो श्रीहरिकी प्रदक्षिणा करते हुए करताल आदि बजाकर उच्च स्वर तथा मनोहर वाणीसे उनके नामोंका कीर्तन करता है, उसने ब्रह्महत्या आदि पापोंको मानो ताली बजाकर भगा दिया ।

जो हरिभक्ति-कथाकी फुटकर आख्यायिका भी श्रवण करता है, 

उसके दर्शनमात्रसे मनुष्य पवित्र हो जाता है । मुनिवरो! फिर उसके विषयमें पापोंकी आशङ्का क्या रह सकती है । महर्षियो ! श्रीकृष्णका नाम सब तीर्थोंमें परम तीर्थ है ।

जिन्होंने श्रीकृष्ण-नामको अपनाया है, वे पृथ्वीको तीर्थ बना देते हैं । इसलिये श्रेष्ठ मुनिजन इससे बढ़कर पावन वस्तु और कुछ नहीं मानते ।

श्रीविष्णुके प्रसादभूत निर्माल्यको खाकर और मस्तकपर धारण करके मनुष्य साक्षात् विष्णु ही हो जाता है, वह यमराजसे होनेवाले शोकका नाश करनेवाला होता है, वह पूजन और नमस्कारके योग्य साक्षात् श्रीहरिका ही स्वरूप है—इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।

जो इन अव्यक्त विष्णु तथा भगवान् महेश्वरको एकमावसे देखते हैं, उनका पुनः इस संसारमें जन्म नहीं होता ।

अतः महर्षियो ! आप आदि-अन्तसे रहित अविनाशी परमात्मा विष्णु तथा महादेवजीको एकभावसे देखें तथा एक समझकर ही उनका पूजन करें ।

जो हरि' और 'हर' को समान भावसे नहीं देखते, श्रीशिवको दूसरा देवता समझते हैं, 

वे घोर नरकमें पड़ते हैं, उन्हें श्रीहरि अपने भक्तोंमें नहीं गिनते । पण्डित हो या मूर्ख, ब्राह्मण हो या चाण्डाल, यदि वह भगवान्का प्यारा भक्त है तो स्वयं भगवान् नारायण उसे संकटोंसे छुड़ाते हैं ।

भगवान् नारायणसे बढ़कर दूसरा कोई ऐसा नहीं है, जो पापपुञ्जरूपी वनको जलानेके लिये दावानलके समान हो । भयंकर पातक करके भी मनुष्य श्रीकृष्णनामके उच्चारणसे मुक्त हो जाता है ।

उत्तम व्रतका पालन करनेवाले महर्षियो ! जगद्गुरु भगवान् नारायणने स्वयं ही अपने नाममें अपनेसे भी अधिक शक्ति स्थापित कर दी है ।
नाम-कीर्तनमें परिश्रम तो थोड़ा होता है, 
किंतु फल भारी-से-भारी प्राप्त होता है यह देखकर जो लोग इसकी महिमाके विषयमें तर्क उपस्थित करते हैं, वे अनेकों बार नरकमें पड़ते हैं । इसलिये हरिनामकी शरण लेकर भगवान्की भक्ति करनी चाहिये ।

 प्रभु अपने पुजारीको तो पीछे रखते हैं, किंतु नाम-जप करनेवालेको छातीसे लगाये रहते हैं । हरिनामरूपी महान् वज्र पापोंके पहाड़को विदीर्ण करनेवाला है ।

 जो भगवान्की ओर आगे बढ़ते हों, मनुष्यके वे ही पैर सफल हैं । वे ही हाथ धन्य कहे गये हैं, जो भगवान्की पूजामें संलग्न रहते हैं । जो मस्तक भगवान्के आगे झुकता हो, वही उत्तम अङ्ग है ।

जीभ वही श्रेष्ठ है, जो भगवान् श्रीहरिकी स्तुति करती है । मन भी वही अच्छा है, जो उनके चरणोंका अनुगमन-चिन्तन करता है तथा रोएँ भी वे ही सार्थक कहलाते हैं, जो भगवान्का नाम लेनेपर खड़े हो जाते हैं।

इसी प्रकार आँसू वे ही सार्थक हैं, 
जो भगवान्की चर्चाके अवसरपर निकलते हैं। अहो ! संसारके लोग भाग्यदोषसे अत्यन्त वञ्चित हो रहे हैं; क्योंकि वे नामोच्चारणमात्रसे मुक्ति देनेवाले भगवान्का भजन नहीं करते ।

स्त्रियोंके स्पर्श एवं चर्चासे जिन्हें रोमाञ्च हो आता है, श्रीकृष्णका नाम लेनेपर नहीं, वे मलिन तथा कल्याणसे वञ्चित हैं ।

जो अजितेन्द्रिय पुरुष पुत्रशोकादिसे व्याकुल होकर अत्यन्त विलाप करते हुए रोते हैं, किंतु श्रीकृष्णनामके अक्षरोंका कीर्तन करते हुए नहीं रोते, वे मूर्ख हैं ।

जो इस लोकमें जीभ पाकर भी श्रीकृष्णनामका जप नहीं करते, वे मोक्षतक पहुँचनेके लिये सीढ़ी पाकर भी अवहेलनावश नीचे गिरते हैं। इसलिये मनुष्यको उचित है कि वह कर्मयोगके द्वारा भगवान् श्रीविष्णुकी यत्नपूर्वक आराधना करे ।

कर्मयोगसे पूजित होनेपर ही भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं, अन्यथा नहीं । भगवान् विष्णुका भजन तीर्थोसे भी अधिक पावन तीर्थ कहा गया है ।

सम्पूर्ण तीर्थोंमें स्नान करने, उनका जल पीने और उनमें गोता लगानेसे मनुष्य जिस फलको पाता है, वह श्रीकृष्णके सेवनसे प्राप्त हो जाता है ।

भाग्यवान् मनुष्य ही कर्मयोगके द्वारा श्रीहरिका पूजन करते हैं। अतः मुनियो ! आपलोग परम मङ्गलमय श्रीकृष्णकी आराधना करें ।
( पद्म० स्वर्ग० ५० । ४-३७)

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