मोह का महल ढहेगा ही maya moh nirakaran-bhagwat Pravchan hindi

||मोह का महल ढहेगा ही || 
( महल खंडहर )
मोह का महल ढहेगा ही maya moh bhagwat Pravchan hindi
एक सच्ची घटना है- नाम और स्थान नहीं बतलाना है, उसकी आवश्यकता भी नहीं है | एक विद्वान सन्यासी मंडलेश्वर थे उनकी बड़ी अभिलाषा थी गंगा किनारे आश्रम बनवाने की | बड़े परिश्रम से कई वर्ष की चिंता और चेष्टाके परिणाम स्वरूप द्रव्य एकत्र हुआ |

भूमि ली गई, भवन बनने लगा विशाल भव्य भवन बना आश्रम का और उसके गृह प्रवेश का भंडारा भी बड़े उत्साह से हुआ |
सैकड़ों साधुओं ने भोजन किया, 
भंडारे की झूठी पत्तलें फेंकी नहीं जा सकी थी, जिस चूल्हे पर उस दिन भोजन बना था, उसकी अग्नि बुझी नहीं थी |

गृह प्रवेश के दूसरे दिन प्रभात का सूर्य स्वामी जी ने नहीं देखा उसी रात्रि उनका परलोक वास हो गया |

यह कोई एक घटना हो, ऐसी तो कोई बात नहीं है | ऐसी घटनाएं होती रहती हैं | हमें इसे देखकर भी ना देखें------

कौड़ी कौड़ी महल बनाया लोग कहे घर मेरा |
ना घर मेरा ना घर तेरा चिड़िया रैन बसेरा ||

यह संतवाणी जिनकी सत्य है यह कहना नहीं होगा | जिसे हम अपना भवन कहते हैं क्या वह हमारा ही भवन है ? जितनी आसक्ती, जितनी ममता से हम उसे अपना भवन मानते हैं, उतनी ही आसक्ती, उतनी ही ममता उसमें कितनों की है, हम जानते हैं ?

लाखों चीटियां, गणना से बाहर मक्खियां, मच्छर और दूसरे छोटे कीड़े, सहस्त्रों चूहे, सैकड़ों मकड़िया, दर्जनों छिपकलियां, कुछ पंछी और पतंग ऐसे भी दूसरे प्राणी जिन्हें हम जानते तक नहीं-- लेकिन मकान उनका नहीं है, यही कैसे ? उनका ममत्व भी तो उसी कोटि का है,जिस कोटि का हमारा |

मकान - महल दोनों की गति एक ही है ! 
बड़ी लालसा से बड़े परिश्रम से उसका निर्माण हुआ उसकी साज-सज्जा, उसका वैभव लेकिन एक भूकंप का हल्का झटका आया तो ,,,, किसी देश में कभी भी मनुष्य की पैशाचिकता ही भूकंप से भी अधिक प्रलय कर सकती है |

 महाविनाश के जो मेघ विश्व के भाग्याकाश पर घिरते जा रहे हैं- कहां कब वायुयानों से दारुण अग्नि वर्षा प्रारंभ होगी , कोई नहीं जानता |

परमाणु या उससे भी ध्वंसक किसी अस्त्र का एक आघात क्या रूप होगा इन भवनों और महलों का ? कुछ ना हो- काल अपना कार्य बंद नहीं कर देगा | जो बना है नष्ट होकर रहेगा महल का परिणाम है खंडहर वह खंडहर, जिसे देखकर मनुष्य ही डर जाता है |

रात्रि तो दूर जब दिन में जाते समय भी सावधानी की आवश्यकता पड़ती है | मनुष्य का मोह उससे महल बनवाता है और महल खंडहर बनेगा यह निश्चित है |

केवल महल ही खंडहर नहीं होता | 
जीवन में हम जो मोह का विस्तार करते हैं, धन, जन मान ,अधिकार, भूमि मोह का महल ही है यह सब और मोह का महल ढहेगा ही | उसका वास्तविक रूप ही है- खंडहर |

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