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Showing posts from September, 2020

मोह का महल ढहेगा ही maya moh nirakaran-bhagwat Pravchan hindi

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||मोह का महल ढहेगा ही ||  ( महल खंडहर ) एक सच्ची घटना है- नाम और स्थान नहीं बतलाना है, उसकी आवश्यकता भी नहीं है | एक विद्वान सन्यासी मंडलेश्वर थे उनकी बड़ी अभिलाषा थी गंगा किनारे आश्रम बनवाने की | बड़े परिश्रम से कई वर्ष की चिंता और चेष्टाके परिणाम स्वरूप द्रव्य एकत्र हुआ | भूमि ली गई, भवन बनने लगा विशाल भव्य भवन बना आश्रम का और उसके गृह प्रवेश का भंडारा भी बड़े उत्साह से हुआ | सैकड़ों साधुओं ने भोजन किया,  भंडारे की झूठी पत्तलें फेंकी नहीं जा सकी थी, जिस चूल्हे पर उस दिन भोजन बना था, उसकी अग्नि बुझी नहीं थी | गृह प्रवेश के दूसरे दिन प्रभात का सूर्य स्वामी जी ने नहीं देखा उसी रात्रि उनका परलोक वास हो गया | यह कोई एक घटना हो, ऐसी तो कोई बात नहीं है | ऐसी घटनाएं होती रहती हैं | हमें इसे देखकर भी ना देखें------ कौड़ी कौड़ी महल बनाया लोग कहे घर मेरा | ना घर मेरा ना घर तेरा चिड़िया रैन बसेरा || यह संतवाणी जिनकी सत्य है यह कहना नहीं होगा | जिसे हम अपना भवन कहते हैं क्या वह हमारा ही भवन है ? जितनी आसक्ती, जितनी ममता से हम उसे अपना भवन मानते हैं, उतनी ही आसक्ती...

भगवद्भक्ति bhagwan ki bhakti in hindi

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भगवद्भक्ति bhagwan ki bhakti in hindi जिसने मन, वाणी और क्रियाद्वारा श्रीहरिकी भक्ति की है, उसने बाजी मार ली, उसने विजय प्राप्त कर ली, उसकी निश्चय ही जीत हो गयी-इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। सम्पूर्ण देवेश्वरोंके भी ईश्वर भगवान् श्रीहरिकी ही भलीभाँति आराधना करनी चाहिये । हरिनामरूपी महामन्त्रोंके द्वारा पापरूपी पिशाचोंका समुदाय नष्ट हो जाता है। एक बार भी श्रीहरिकी प्रदक्षिणा करके मनुष्य शुद्ध हो जाते हैं तथा सम्पूर्ण तीथों में स्नान करनेका जो फल होता है, उसे प्राप्त कर लेते हैं—इसमें तनिक भी संदेह नहीं है । मनुष्य श्रीहरिकी प्रतिमाका दर्शन करके सब तीर्थोंका फल प्राप्त करता है तथा विष्णुके उत्तम नामका जप करके सम्पूर्ण मन्त्रोंके जपका फल पा लेता है । द्विजवरो ! भगवान् विष्णुके प्रसादस्वरूप तुलसीदलको सूंघकर मनुष्य यमराजके प्रचण्ड एवं विकराल मुखका दर्शन नहीं करता । एक बार भी श्रीकृष्णको प्रणाम करनेवाला मनुष्य पुनः माताके स्तनोंका दूध नहीं पीता उसका दूसरा जन्म नहीं होता ।  जिन पुरुषोंका चित्त श्रीहरिके चरणोंमें लगा है, उन्हें प्रतिदिन मेरा बारंबार नमस्कार है । पुल्कस, श्...

bhagwat katha in hindi ,-22

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 bhagwat katha in hindi ,भाग-22 जिह्वां क्वचित् संदशति स्वदद्भिस्तद्वेदनायां कतमाय कुप्येत् ।  (भा.मा. 11/23/51) यदङ्गमङ्गेन निहन्यते क्वचित् क्रुध्येत कस्मै पुरुषः स्वदेहे ॥  (भा.मा. 11/23/52)  किस पर क्रोध करें, ये ज्ञान हो जाने से संत अजातशत्रु हो जाता है। वह किसी से वैर नहीं करता। क्योंकि, सीय राममय सब जग जानि ।  करहु प्रणाम जोरि जुग पानी ॥  (रामचरितमानस 1/8/1)  कपिल भगवान् कहते हैं, माँ ! ऐसे संतों के संग में रहने से सतां प्रसंगान्मम वीर्यसंविदो भवन्ति हत्कर्णरसायनाः कथाः । तज्जोषणादाश्वपवर्गवर्त्मनि श्रद्धा रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति ॥ (भा. 3/25/25)  उन संतों के बीच में बैठोगे, तो चौबीसों घंटे वह मेरी महिमा सुनायेंगे मेरी मधुर-मधुर कथा सुनायेंगे। नाम की महिमा, रूप की महिमा, स्वभाव की महिमा, प्रभाव की महिमा, भगवान् की कृपालुता की महिमा, भगवान् के करुणामय स्वभाव की महिमा, इतनी सुनायेंगे कि सुन-सुनकर आप अपने आप ही दीवाने हो जाओगे। श्रद्धा रतिः भक्तिः' - अपने आप भगवान् की महिमा सुनकर श्रद्धा उत्पन्न होगी, फिर धीरे-धीरे...