sampurna bhagwat katha in hindi 17

sampurna bhagwat katha in hindi
[ भाग-17,part-17]
 

कभी-कभी सड़क पर गाड़ी से चलते गर्मियों में देखियेगा, सूर्य की रश्मियों के पडने से ऐसा लगता है कि जैसे जल सड़क पर पड़ा हो। पर पानी एक बूंद भी नहीं होता। और दूर से देखो, तो स्पष्ट जल ही नजा आयेगा। वही मृगतृष्णा कहलाती है। प्यासा सरोवर के तट पर खड़ा है। जहाँ पानी भरा है, वहाँ पानी दिख नहीं रहा। और जहाँ पानी दिख रहा है, वहाँ पानी की बूंद नहीं है। तो भ्रम में पड़ गया।


पानी जहाँ दिख रहा था. वहाँ दौड़ पड़ा तो रेगिस्तान में भटकता-भटकता मर गया। पानी का तट छोड़कर रेगिस्तान में पानी पीने गया। यही हालत हम लोगों की है। भीतर हमारे प्रभु ने आनन्द का सागर भर रखा है, पर उस आनन्द के सागर में अज्ञानता की काई लगी हुई है इसलिए दिख नहीं रहा, समझ में नहीं आ रहा। और बाहर के विषयों में आनन्द का भ्रम है। सुख का भ्रम है।

मानस 7/117/1, 

जीव जो सहज ही सुखराशि था
जिसके भीतर आनन्द-ही-आनन्द और सुख सब भरा हुआ था पर अज्ञा की परत के कारण दिखा नहीं। बाहर के विषयों में सुख का भ्रम हो गया, सो बाहर ढूँढने लगे। ये मिल जाये तो सुखी हो जाऊँ वह आ जाये, तो सुखी हो जाऊँ सुख के साधन स्वरूप उन तमाम वस्तुओं को जुटाता रहा . पर जीवन में सुखी कभी नहीं हो पाया क्योंकि बाहर जो सुख दिखाई पड़ रहा है, वह नकली है।

जैसे एक श्रीमानजी ने कहा, भाई ! गर्मी आ गई है। आम का मौसम आ गया। चलो, आम खाये जायें। बेटे को बुलाया बेटा! जाओ बाजार से बढ़िया आम लेकर आओ। रूपये दिये, बेटा गया। एक दुकान पर बहुत सारे फल सजे हुए थे। रूपये देकर आम मांगे, दुकानदार ने आम दे दिये, बालक लेकर घर आ गया।

पिताजी ! मैं आम ले आया। पिताजी ने कहा, अच्छा बेटा ! एक काम करो। आम ठंडे पानी की बाल्टी में डाल दो ताकि खूब ठंडे हो जायें, तब खाने में आनन्द आयेगा। जाकर पानी में डाल दिये। थोड़ी देर बाद बोले, चलो ! अब तो खूब ठंडे हो गये होंगे, चलो पाते हैं।

जैसे ही बाल्टी देखी गई, उसमें एक भी आम नहीं, सब मिट्टी-मिट्टी ही नजर आई। बेटा! ये आम तू कहाँ से लाया? बालक बोला, दुकान से। तो चल-चल ! मेरे साथ दुकान पर।

दुकान पर गया। अब फल वाली दुकान पर श्रीमानजी ने लडना-झगडना प्रारम्भ कर दिया, क्यों रे मूर्ख! हमारे नन्हे-से बच्चे को धोखा दिया? तूने ठग लिया? कैसे आम पकड़ा दिये? एक भी खाने का नहीं? दुकानदार बोला, श्रीमानजी! नाराज बाद में होइये। पहले दुकान का बोर्ड तो पढ़ लीजिये।

स्पष्ट लिखा है नकली फलों की दुकान। मेरे यहाँ फल बेचे जाते हैं, पर वह दिखावटी हैं। सजाने के लिये लोग खरीद के ले जाते हैं, घरों में खाने के लिये नहीं। आपके बेटे ने आम मांगे, मैंने दे दिये।

अब मुझे क्या मालूम खाने को ले जा रहा है कि सजाने को? गलती तुम्हारी है, तुमने बोर्ड क्यों नहीं पढ़ा? उसी प्रकार भगवान् ने तो संसार के ऊपर एक बोर्ड लगा दिया,
'दुःखालयमशाश्वतं' (भगवद्गीता 8/15) 
- ये संसार दु:ख का घर है। दुःखालय में एक ही दु:ख थोड़े ही होता है? अनेक प्रकार के दुःख।

इस दुःखालय में तो सब दु:खी हैं। अब तुम भोजनालय में जाकर भंडारीजी से कहो कि हमें लघुसिद्धान्तकौमुदी हमें पढ़ना है। वह कहाँ से दे देंगे। यदि तुम्हें पुस्तक चाहिये तो पुस्तकालय में जाइये। और पुस्तकालय में जाकर कहो कि जरा गरमा-गरम चार समोसे दीजिये, हमें भूख लगी है।

वह कहाँ से देगा? सबके अलग-अलग आलय (स्थान) हैं। दुःखालय में दुःख ही मिलेगा, सुख कहाँ से मिलेगा? पर हम तो दुःखालय में सुख ढूँढ़ रहे हैं, जो किसी काल में सम्भव नहीं है। तो जो आनन्दसिंधु सुखराशि हैं, उनसे दुःख मांगोगे भी तो भी नहीं मिलने वाला क्योंकि उनके खजाने में है ही नहीं।

पूर्व प्रकरण में आपने पढ़ा होगा कि कुन्तीमैया ने दुःख माँगा तो क्या भगवान् ने दे दिया? कहाँ से देते, था ही नहीं। पर जगत् के दुःखालय में यदि सुख मांगो, तो कहाँ से मिलेगा? वहाँ है ही नहीं। इसीलिये सच्चिदानन्द के चरणों से जुड़े बिना सुख नहीं है।

सुख-शान्ति का साम्राज्य तो भगवान् के श्रीचरणों में है, 
इसलिये वहाँ से जुड़े बिना किसी को जीवन में न सुख मिल सकता है, न शान्ति मिल सकती है।
आपके घर में बिजली जरूर होगी, पर आपका घर बिजली घर तो नहीं होगा? अरे ! बिजली घर तो कहीं और है। वहाँ से कनेक्शन आपके घर तक लगा हुआ है, इसलिये आपके घर में बिजली है। पावरहाउस से लाइन काट दी गई, तो लटके रह जायेंगे सब उपकरण।

पंखा हो, बल्ब हो, ... कुछ भी हो, सब लटके रह जायेंगे। पर साहब ! पावरहाउस से तो लाइन चालू है, हमारे ही घर में अंधेरा है, पड़ौसी के घर मे तो खूब उजाला हो रहा है। इसका मतलब है कि उधर से कमी नहीं है, कमी तुम्हारे ही घर के बल्ब में है। या तो बल्ब फ्यूज है अथवा लाइन खराब है, तार खराब है, तो उसे सुधरवाइये।

 उसके लिये जगह-जगह पर बिजली के विशेषज्ञ लोग घूमते हैं, किसी बुद्धिमान को पकड़िये जो तुम्हारा तार ठीक कर दे। उसी प्रकार एक संत हमें आनन्द में झूमता नजर आ रहा है, मस्ती में डूब रहा है और हम चौबीसों घंटे रोते ही रहते हैं, क्या चक्कर है? हमारी लाइट क्यों चली गई? हमारा आनन्द कहाँ चला गया?

तो ऐसे किसी सद्गुरु के पास जाओ जो तुम्हारी लाइन फिर से फिट कर दे, जो पावरहाउस से तुम्हारा कनेक्शन ठीक जोड़ दे तो तम्हारे घर में भी आनन्द का प्रकाश प्रकट हो जायेगा।

दूरदर्शन से प्रसारण हो रहा है, आपके पास टेलीविजन भी है फिर चित्र क्यों नहीं आ रहा? पहले तो टेलीविजन को ऑन करो, उसके बाद में वही चैनल लगाओ जहाँ से भजन का प्रसारण हो रहा है। ऊटपटांग चैनल है, तुमने उल्टा-सीधा चैनल लगा दिया। तो टी.वी. ऑन तो है, पर ऊटपटांग दृश्य आयेंगे।

जहाँ से संस्कार का प्रसारण हो रहा है, वहीं पर आपको भी अपना चैनल फिट करना पड़ेगा, तब जाकर आपको वह सुन्दर दृश्य दिखाई पड़ेंगे। उसी प्रकार आनन्द तो सर्वत्र है, भगवान् ने सबके भीतर भर दिया है। पर जबतक हम अपना भीतर का टेलीविजन ऑन न करें और कनेक्शन वहाँ से ठीक से फिट न करें, वही चैनल न जोड़ें तबतक ये दृश्य कैसे आवे?

हनुमन्तलालजी ने देखो अपना चैनल जोड़ दिया--
जासु हृदय आगार बसहि राम सरचाप धर 
(रामचरितमानस 1/17) 

ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति
(भगवद्गीता 18/61) 

सबके भीतर वह बैठा है, पर दिखाई कहाँ पड़ रहा है? उसका दृश्य नहीं दिखाई पड़ रहा। हनुमन्तलालजी ने देखो, वह दृश्य प्रकट कर दिया। छाती चीरकर भी दिखा दिया।

इस प्रकार से श्रीविदुरजी महाराज को मैत्रेय मुनि ने बड़ा सुन्दर उपदेश दिया। सृष्टि के बारे में प्रश्न किया, तो विस्तार से सृष्टि-प्रक्रिया का वर्णन किया। भगवान् नारायण के नाभिकमल से ब्रह्माजी प्रकट हुए।

 ब्रह्माजी ने सृष्टि की इच्छा प्रकट की, 
तो भगवान् के ज्ञान को आत्मसात करके सबसे पहले ब्रह्माजी ने अपने संकल्प से सृष्टि में चार कुमारों को जन्म दिया, 1. सनक, 2. सनन्दन, 3. सनातन और 4. सनत्कुमार। चारों से ब्रह्माजी ने कहा कि बच्चों ! तुम भी सृष्टि करो। चारों ने कहा, हम बिल्कुल चक्कर में नहीं पड़ेंगे। हम तो केवल हरि का भजन करेंगे।

ब्रह्माजी को क्रोध आ गया कि हमारे पुत्र हमारी आज्ञा नहीं मान रहे। इतना क्रोध आया कि उनका क्रोध ही भृकुटी का भेदन करके भगवान् रुद्र (शंकर) के रूप में प्रकट हो गया।

शिवजी को देखकर ब्रह्माजी ने कहा, अरे भाई! तुम्हारा नाम रुद्र होगा और काम तुम्हारा यही है कि तम सृष्टि का विस्तार करने में हमें सहयोग दो। तो भोले बाबा ने भूत, प्रेत, डाकिनी, पिशाचिनी, आदि की सष्टि प्रारम्भ कर दी।

ब्रह्माजी बोले, बस करो महाराज! इतनी खतरनाक सृष्टि हमें नहीं करवानी, 
आप तो बैठकर भजन करो। भोलेबाबा भजन में बैठ गये। अबकी बार ब्रह्माजी ने मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रत. भृगु वसिष्ठ, दक्ष और देवषि नारद - इन दस ऋषियों को प्रकट किया।

अपनी वाणी से ब्रह्माजी ने परमसुन्दरी कन्या सरस्वती को प्रकट किया तथा अपनी छाया से महामुनि कर्दमजी को प्रकट किया। ये सब ब्रह्माजी की मानसी सृष्टि हैं। और उसके बाद विधाता ब्रह्माजी ने अपने वामांग से कन्या और दक्षिणांग से पुरुष को जन्म दिया, जिनका नाम हुआ मनु और शतरूपा।
sampurna bhagwat katha in hindi

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