bhagwat - भागवत -14

bhagwat-भागवत 
[ भाग-14 ,part-14  ]
किशोरीजी सखियों के साथ पूजा करने पुष्प वाटिका ही गई थीं। पर
‘एक सखी सिय संगु बिहाई' 
(रामचरितमानस 1/228/4) 
वह पूजा-पाठ छोड़कर घूमने के लिये बगीचा में निकल पड़ी। तो जो घूमने निकली थी, उसी को परमात्मा सबसे पहले मिले। और उसी की कृपा से अन्य सखियों को मिले। तो अब यह कानून नहीं लगा सकते कि पूजा न करने से ही भगवान् मिलते हैं, ये कोई नियम नहीं हो गया। भगवान की कृपा कैसे हो जाये? घर में रहने वालों को न मिलें और घर में रहने वालों को पहले मिल जायें और वन में घूमते-घूमते वर्षों बीत गये नहीं मिले।

विश्वामित्रजी ने घर त्यागा और वन में खूब भटके, तपस्यायें की दरो ब्रह्मा बनने की सामर्थ्य तक इनमें आ गया तपस्या करते-करते। और दशरथजी महाराज घर में ही रहे और रामजी घर में ही आ गये।

तब विश्वामित्र बाबा ने जो घर त्याग रखा था, उसी घर में वापिस आकर विश्वामित्रजी को रामजी का दर्शन मिला। तो घर में मिलेंगे कि वन में मिलेंगे, पूजा करने से मिलेंगे कि बिना पूजा किये ही मिल जायेंगे कृपा के ऊपर कोई नियम नहीं है। कृपा तो कब हो जाये? किस पर हो जाये? कैसे हो जाये ?

इस पर 'इदमित्थं' कहकर कोई नहीं बता सकता कि ऐसा करोगे, तो मिलेगा ऐसा करने से ही मिलेगा, ये कोई नहीं कह सकता। घुणाक्षरन्याय आप जानते हैं, लकड़ी में घुन लग जाता है। तो कभी घर बन जाता है, कभी स्वस्तिक बन जाता है।

अब किसी लकड़ी में आपने घुन के द्वारा घर बना देख लिया और आपने सोचा कि चलो हम भी अपनी लकड़ी पर घुन के द्वारा घर बनवा लें। तो कई-सौ किलो लकडियां बर्बाद हो जायेंगी, फिर भी घर बनाने वाला नहीं है। वह तो बनना था, सो बन गया।

अब कैसे बन गया? ये तो वह ही जाने। 
ऐसे ही भगवान् की कृपा कब हो जायेगी? कैसे हो जायेगी? ये तो वह ही जाने कृपा करने वाला। तो संतों ने भगवद्-शरणागति ही एकमात्र उपाय बतलाया है। अब भगवान् को प्रसन्न कैसे किया जाये? कोई कहता है, शुद्ध-पवित्र आचार-विचार से रहो तो भगवान् बहुत जल्दी रीझ जाते हैं।

पर भगवान् की कृपा तो बहेलिया के ऊपर भी हुई, जिसका आचरण कहीं से भी ठीक नहीं। कुछ लोग कहते हैं, भाई ! हम तो अभी बच्चे हैं, ये काम बुड्ढों का है। बूढ़े बुजुर्ग लोग बैठे-बैठे भजन करते हैं, बुड्ढों पर भगवान् की कृपा होती है। तो ध्रुवजी महाराज को तो पाँच वर्ष की अवस्था में ही मिल गये थे, अतः अवस्था का भी कोई प्रतिबंध नहीं है।

कुछ लोग कहते हैं कि हम तो पढ़े लिखे बिल्कुल नहीं हैं, भगवान् के बारे में तो विद्वान् लोग जानते हैं उन्हीं को वह मिलते हैं। ऐसी बात भी नहीं है, एक गजेन्द्र ने गोविन्द को प्रीतिपूर्वक एक पुष्प प्रदान कर दिया, उसी पर दौड़े चले आये। अब भला! गजराज कौन-से विश्वविद्यालय में पढ़कर आया होगा? कुछ लोग कहते हैं कि भगवान तो ऊँची जाति वालों को, ब्राह्मणों को, वेदज्ञों को ही मिलते हैं।

विदुरजी महाराज तो दासी पुत्र थे, शबरी तो भीलनी थी उन्हें कैसे मिल गये? 
कुछ लोग कहते हैं कि भगवान् तो पहलवानों को मिलते हैं, बहुत शक्तिशाली होना चाहिये। पर उग्रसेन महाराज तो बड़े निर्बल थे। बेटा ने ही पकड़ के बंदी बना रखा था।

भगवान् उग्रसेन को ही राजा बनाकर उनके सेवक बन गये, उनके सलाहकार बन गये। कुछ लोग कहते हैं, भगवान् तो धनवानों को जल्दी मिलते हैं, फिर सुदामा-जैसे निर्धन को कैसे मिल गये? कोई कहता है कि भगवान् सुंदरता पर रीझते होंगे तो फिर कुब्जा पर क्यों रीझ गये? तो फिर भगवान् रीझते किस बात पर हैं? भगवान् की कृपा स्वतन्त्र है, कब किस पर हो जाये, कोई पता नहीं।
भक्त्या तुष्यति केवलं न च गुणैर्भक्तिप्रियो माधवः 
आपके अंदर भगवान् के प्रति प्रेम होना चाहिये, प्रेम ते प्रकट होहि मैं जाना प्रेम जहाँ है, जिसमें है, जैसा भी है भगवान् उसी पर रीझते हैं। दुर्योधन के यहाँ भगवान् के स्वागत में बहुव्यंजन थे, पर प्रेम नहीं था।

भगवान् ने पाना तो दूर रहा, चखा भी नहीं। और वुिदरजी के यहाँ प्रेम है, पर पदार्थ उतने नहीं है फिर भी भगवान् बिन बलाये दौड़े चले आये। भगवान् कहते हैं, भक्त का घर तो मेरा ही घर है और अपने घर में कोई निमंत्रण की प्रतीक्षा नहीं करता।

कोई कहे, पिताजी ! आपका न्यौता है, चलो भोजन कर लो। अरे! जब भूख लगे, तब आदेश देते हैं, भाई! थाली परोसो। ये अधिकार कहाँ होता है? जिसे हम अपना घर मानते हैं। जहाँ तनिक भी दूरी न मानें, अपना ही घर मानें, वहाँ तो सीधा आदेश देते हैं, भाई ! भोजन परोसो। तो भगवान् ने विदुरजी के घर को अपना घर समझा, इसलिए सीधे ही चले आये।

और दुर्योधन से कह दिया कि भाई ! तुम हमारे समधी लगते हो, रिश्तेदारी अपने स्थान पर है, पर क्या नहीं मालूम ! भोजन दो ही स्थिति में होते हैं - 1. या तो खिलाने वाले के हृदय में बहुत ज्यादा प्रेम होना चाहिये। अब कोई प्रेमी भोजन का दुराग्रह करे तो थोड़ा-बहुत पाना भी पड़ता है, भले ही भूख न हो। बहुत ज्यादा प्रेम हो तो भोजन पाना पड़ता है।

अथवा 2. बहुत ज्यादा भूख हो, तो भोजन पाना पड़ता है। खिलाने वाले के हृदय में भले ही प्रेम न हो, पर हम तो भूख से मरे जा रहे हैं। इज्जत से मिले या बेइज्जती से मिले या कोई भी हेलीकाप्टर से भी टपकावे, तो उस समय हम छीनकर पा लेंगे क्योंकि परिस्थिति जब विषम आती हैं, कभी-कभी तो ऐसे भी पाना पड़ता है।

तो भगवान् बोले, न तो मेरी ऐसी परिस्थिति है कि मैं भोजन के बिना रह न पाऊँ, मैं भूखा नहीं हूँ। और दुर्योधन ! न तेरे मन में इतना प्रेम है कि मुझे पाना ही पड़े। इसलिये तेरे यहाँ भोजन का प्रश्न ही नहीं उठता।'

भगवान् कहते हैं, प्रेम का भूखा मैं हूँ और पदार्थ के भूखे संसारी हैं। दुनिया वाले आवें, चकाचक बढ़िया-बढ़िया माल खिला दो। खुश हो जायेंगे, गीत गाते रहेंगे - साहब! बड़ा स्वागत किया, उनके यहाँ जाकर क्या-क्या माल छाने, भाई ऐसा सम्मान कभी नहीं हुआ। तो संसार पदार्थ का भूखा है, खिला दो, गीत गाते रहेंगे। पर परमात्मा प्रेम के भूखे हैं।

bhagwat-भागवत

पर हम लोग उल्टा करते हैं। प्रेम दुनिया वालों से करते हैं, जो जानते ही नहीं कि प्रेम होता क्या है। प्रेम करना तो दूर प्रेम का स्वरूप ही नहीं जानते कि प्रेम किसे कहते हैं। प्रेम की परिभाषा देवर्षि नारद करते हैं- तत्सुखसुखित्वम् जो अपने प्रियतम के, प्यारे के सुख में ही अपना सुख मान ले वह सच्चा प्रेमी है। प्रेम में कोई भी आवश्यकतायें नहीं, कोई किसी प्रकार की इच्छा-कामना नहीं--

गुणरहितं कामनारहितं प्रतिक्षणवर्धमानं अविच्छिन्नं सूक्ष्मतरं अनुभवरूपम्

ऐसा विशुद्ध प्रेम जगत् में कहाँ दिखता है? प्रीत की रीति रंगीलो ही जाने- ब्रजवासी कहते हैं कि प्रेम निभाना तो हमारे कन्हैया ही जानते हैं।

नीति प्रीति परमारथ स्वारथु । 
कोउ न राम सम जान जथारथु ॥
(मानस 2/254/3) 
तो जो प्रेम निभाना जानता है, उससे प्रेम करो। पर हम लोग संसारियों से प्रेम करते हैं और पदार्थ भगवान को दिखा देते हैं। एक कोई व्यक्ति बिहारीजी को कहता है, अबकी बार हमारी तरफ से भंडारा है दूसरा व्यक्ति कहता है, अबकी बार हमने भी छप्पन प्रकार का भोग लगाया है।

तीसरा कहता है, हमारी बहू के बेटा हो गया. तो हम भी भोग लगवायेंगे। तो जैसे ठाकुरजी हमारे ही भोग के भूखे बैठे हों, पहले बेटा दें, तब भोग लगायेंगे। पदार्थ संसारियों को खिलाओ, प्रेम परमात्मा को प्रदान करो। हमने उल्टा कर दिया।

Comments

Popular posts from this blog

bhagwat katha in hindi ,-22

मोह का महल ढहेगा ही maya moh nirakaran-bhagwat Pravchan hindi

भक्तमालमें वर्णित भगवद्भक्तोंका पावन चरित- परमभक्ता श्रीलालमतीजी bhaktmal katha lyrics