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bhagwat katha in hindi,भागवत कथा इन हिंदी

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bhagwat katha in hindi भागवत कथा इन हिंदी  [ भाग-7,part-7 ] [ प्रथम स्कंध ] दानधर्मान् राजधर्मान मोक्षधर्मान् विभागशः ।  स्त्रीधर्मान् भगवद्ध र्मान् समासव्यासयोगतः ॥ (भा. 1/9/27)  समस्त धर्मो का बृहद् व्याख्यान किया, पर किसी को संक्षेप में भी कहा, किसी को विस्तार से। दिव्यधर्म के मर्म को जानकर युधिष्ठिरजी महाराज सहित समस्त पाण्डवों का शोक दूर हो गया। अब शुक्ल-का दिन आ गया। पितामह भीष्म को लगा, अब बढ़िया समय है, सूर्य उत्तरायण हो चुके हैं और प्रभ सामने खड़े हैं। माघ शुक्ल इससे शुभ घड़ी और कब आयेगी? उत्तरायण काल की प्रतीक्षा थी, पितामह भीष्म को वह पूरी हो गई। छः महीने उत्तरायण और छ: महीने दक्षिणायन में रहते हैं सूर्य भगवान्। देवताओं के लिए दक्षिणायन ही रात्रि है, उत्तरायण ही दिन है।  किसी के घर में दिन में जाओ, तो दरवाजे खुल जायेंगे और रात में जाओ, तो सवेरे तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। तो दक्षिणायन में जो देहत्याग करके जाते हैं, उन्हें दरवाजे बंद मिलते हैं। और उत्तरायण में जाने वालों को दरवाजे खुले मिलते हैं, ऐसी शास्त्रीय मान्यता है। सो पिताम...

श्रीमद् भागवत महापुराण कथा,shrimad bhagwat mahapuran katha

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श्रीमद् भागवत महापुराण कथा  shrimad bhagwat mahapuran katha [ भाग-6,part-6 ] [ प्रथम स्कंध ] आपने मेरी कुलवधू उत्तरा के गर्भ की रक्षा की है, मेरे वंशधर की रक्षा की है। प्रभु ! ये तो सबके आँखों के सामने की अभी-अभी की घटना है। भगवान् बोले, बुआ! आज इतनी लम्बी-चौड़ी मेरी महिमा आखिर क्यों गा रही हो? क्या बात है? अपने भतीजे को भगवान् बनाकर खड़ा कर दिया। क्या बात है? कुन्ती मैया बोलीं, आज कुछ माँगना चाहती हूँ। प्रभु! जब-जब संकट आये तो, आप मेरे सामने आये। दुर्वासाजी के उग्र-शाप का भय जब लगा कि भोजन का निमंत्रण कर दिया और दाना एक नहीं खाने का? अक्षयपात्र भी खाली हो गया। तब तुरन्त आप सामने आये दिखाई पड़ गये। जब भी संकट आये, तब आप भी हमारे सामने आये। आज सारे संकट भाग गये, मेरा पुत्र चक्रवर्ती सम्राट के पद पर विभूषित हो रहा है। दुःखों के बादल हट गये हैं और जहाँ सुख-साम्राज्य आया, सो ही आप हाथ जोड़कर बोले कि बुआ चलता हूँ! तो प्रभु ! मैं तो यही वरदान मांगगी कि यदि विपत्तिकाल में ही आप हमारे पास रहते हो और सुख-समृद्धि आते ही हमें छोड़कर चले जाते हो, तो मैं वरदान माँगना चाहती ...

sampurn bhagwat katha-sampurna bhagwat katha in hindi

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sampurn bhagwat katha sampurna bhagwat katha in hindi [ भाग-5,part-5] [ प्रथम स्कंध ] वपनं द्रविणादानं स्थानान्निर्यापणं तथा । एष हि ब्रह्मबन्धूनां वधो नान्योऽस्ति दैहिकः ॥ (भा. 1/7/57)  ब्राह्मण का दैहिक-वध नहीं करना चाहिये। उसे विद्रूप कर दो, उसे घोर अपमानित कर दो, धक्का मारकर घर से निकाल दो - यही ब्राह्मण की मृत्यु है। शिविर से धक्का मारकर अर्जुन ने अश्वत्थामा को निकाल दिया, उसकी मणि को छीन लिया। अपमान की ज्वाला में जलता हुआ अश्वत्थामा सोचने लगा कि मेरा भी नाम अश्वत्थाम नहीं, इनके वंश में कोई पानी देने वाला नहीं छोडूंगा। अपमानित होकर चला गया। । भगवान् अब इधर पाण्डवों से बोले, भाई! आपके बीच रहते-रहते बहुत दिन हो गये। अब हमारे द्वारिकावासी भी हमारी बहुत राह देख रहे होंगे, तो अब हम अपने घर चलें। पर कोई भी पाण्डव प्रभु को भेजना ही नहीं चाहता, विदा करना ही नहीं चाहता। आपस में विचार किया। अन्त में निर्णय लिया, देखो भाई! आज नहीं तो कल, विदाई तो देना ही पड़ेगी। कबतक हम इन्हें अपने पास बाँधकर रखेंगे? हमें अब स्वार्थ त्यागकर द्वारिकावासियों पर भी ध्यान देना चाह...

sampurna bhagwat katha in hindi,bhagwat puran in sanskrit with hindi translation

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sampurna bhagwat katha in hindi bhagwat puran in sanskrit with hindi translation (भाग-4,part-4) [ प्रथम स्कंध ] बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं  बिभ्रद्वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् । रन्ध्रान्वेणोरधरसुधया पूरयन्गोपवृन्दै र्वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद्गीतकीर्तिः ॥ (भा. 10/21/5)  मोरपंख धारण किये हुए माधव दिव्य-पीतांबर ओढ़े हुए, वंशी बजाते हुए, गायें चराते हुए, ग्वालों से अपनी कीर्ति का श्रवण करते हुए वृंदावन में प्रवेश पा रहे हैं। जो ये श्लोक कान में पड़ा, शुकदेवजी की समाधि खल गई। वाह! ऐसे सुन्दर मोरमुकुट वंशी वाले का तो दर्शन हम भी करेंगे। क्या अद्भुत छटा है? क्या प्यारी झांकी है, देखने योग्य है। चलो चलें देखें! परन्तु विचार बदल गया, अरे! जो इतना सुन्दर है, इतना मधुर है। वह आवश्यक नहीं उतना ही सरल भी हो। कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरूँ? मिलेगा कि नहीं? मिल भी गया तो स्वीकार करेगा कि नहीं? मुझे अपनायेगा कि नहीं? जो सुन्दर है, वह स्वभाव से भी सुन्दर हो, इसकी कोई गारंटी नहीं। अपने चित्त को रोका और पुन: अपने ब्रह्मचिंतन करने का प्रयत्न करने लगे। उस ...

shrimad bhagwat katha in hindi,श्रीमद् भागवत कथा हिंदी

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shrimad bhagwat katha in hindi श्रीमद् भागवत कथा हिंदी ( भाग-3,part-3) [ प्रथम स्कंध ] जीवों का कैसे कल्याण होगा? कलिकाल में लोगों की बुद्धि भी मन्द, भाग्य भी अति मन्द है। कोई बुद्धिहीन व्यक्ति हो, पर यदि भाग्यशाली हो, तो काम चल जायेगा। भाग्यहीन व्यक्ति हो पर, यदि बुद्धिमान हो तो, बुद्धि के बल पर अपना निर्वाह कर लेगा। पर बुद्धि और भाग्य - दोनों ही मन्द पड़ गये हों, तो ऐसे जीवों का कैसे कल्याण होगा? इसलिये व्यासजी महाराज ने उन सबका ध्यान रखते हुए एक वेद के चार विभाग कर दिये - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अर्थववेद। इस पर उनके चित्त को फिर भी शान्ति नहीं हुई क्योंकि वेदों में ज्ञान का भण्डार तो बहुत भरा पड़ा है, पर वेद के ज्ञान को समझने वाला कोई नहीं है। वेद की भाषा जटिल है, तो उसे और सरल करने के लिये पंचम वेद महाभारत की रचना कर दी। जिनकी गति वैदिक ज्ञान में न हो, वह महाभारत का स्वाध्याय करके वैदिकज्ञान प्राप्त कर सकेंगे इसलिये महाभारत की रचना हुई, परन्तु फिर भी मन को संतोष नहीं हुआ। तब पुराणों की रचना प्रारम्भ की। एक-एक करके सत्रह पुराण लिख डाले, पर व्यासजी महाराज का मन ...

shrimad bhagwat mahapuran katha,श्रीमद भागवत महापुराण कथा

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श्रीमद भागवत महापुराण कथा  [ भाग-२ ,part-2] [ प्रथम स्कंध ] छ: प्रश्नों को सुनकर सूतजी महाराज प्रसन्न हो गये और बोले, महात्माओ! पहले हम अपने गुरुदेव भगवान् का ध्यान कर लें, तब आपके इन प्रश्नों का उत्तर देंगे। सूतजी ने शुकदेवजी महाराज का दो श्लोंको में ध्यान किया, यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं  द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव ।  पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु स्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ॥  यः स्वानुभावमखिलश्रुतिसारमेक मध्यात्मदीपमतितितीर्षतां तमोऽन्धम् ।  संसारिणां करुणयाऽऽह पुराणगुह्यं  तं व्याससूनुमुपयामि गुरुं मुनीनाम्॥ (भा. 1/2/2-3)  इन दो श्लोकों में श्रीशुकदेवजी का ध्यान किया। 'यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यम् ' - जो जन्म लेते ही प्रव्रजन्त हो गये। 'व्रजगतौ' धातु में 'प्र' उपसर्ग लगा हुआ है, जिनका वैराग्य उच्चकोटि का है कि परिस्थिति विपरीत हो, तो वैराग्य बहुतों को चढ़ता है। पर शुकदेवजी महाराज का तो सहज व स्वाभाविक वैराग्य है। जब पैदा हुए तो पिताजी 'पुत्र-पुत्र' कहकर वात्सल्य उड़ेल रहे हैं। फिर भी वन की ओर चले जा रह...