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Showing posts from May, 2020

भागवत पुराण हिंदी में bhagwat puran hindi men 18

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sampurna bhagwat katha in hindi भाग-18 ,part-18  मनु -शतरूपा से ही मानवी-सृष्टि का विस्तार हुआ। इसलिये मनुपुत्र होने के नाते ही हम लोग मानव कहलाते हैं। जो लोग हमें मनुवादी कहकर पुकारते हैं, इसका मतलब वह अपने को मनुपुत्र नहीं मानते। तो वह अपना स्वयं हिसाब लगा कि वह अपने को किसकी सन्तान मानते हैं। अरे! मानवमात्र मनु के पुत्र हैं। मनु-शतरूपा से पाँच सन्तानें हुई, उनमें दो बेटा और तीन बेटी हैं।  बेटियों के नाम है - आकूति, देवहूति और प्रसूति तथा बेटों के नाम हैं - प्रियव्रत और उत्तानपाद। पर एक दिन मनु महाराज ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की। भगवन् ! सृष्टि का मैं विस्तार तो करना चाहता हूँ, पर कैसे करूँ? महाराज! हिरण्याक्ष राक्षस पृथ्वी का ही हरण करके ले गया। तब ब्रह्माजी ध्यान लगाया, ध्यान लगाते ही उन्हें बड़ी तेज छींक आई। छींकते ही उनकी नासिकारन्ध्र से भगवान् का वाराह रूप में प्राकट्य हो गया। देखते-देखते वाराह भगवान् का पर्वताकार देह हो। गया। देवताओं ने स्तवन किया, हिरण्याक्ष का वध करके भगवान् ने पृथ्वी का उद्धार किया। विदुरजी ने मैत्रेयजी से पूछ दियाकि भगवन ! कृपा करके...

sampurna bhagwat katha in hindi 17

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sampurna bhagwat katha in hindi [ भाग-17,part-17]   कभी -कभी सड़क पर गाड़ी से चलते गर्मियों में देखियेगा, सूर्य की रश्मियों के पडने से ऐसा लगता है कि जैसे जल सड़क पर पड़ा हो। पर पानी एक बूंद भी नहीं होता। और दूर से देखो, तो स्पष्ट जल ही नजा आयेगा। वही मृगतृष्णा कहलाती है। प्यासा सरोवर के तट पर खड़ा है। जहाँ पानी भरा है, वहाँ पानी दिख नहीं रहा। और जहाँ पानी दिख रहा है, वहाँ पानी की बूंद नहीं है। तो भ्रम में पड़ गया। पानी जहाँ दिख रहा था. वहाँ दौड़ पड़ा तो रेगिस्तान में भटकता-भटकता मर गया। पानी का तट छोड़कर रेगिस्तान में पानी पीने गया। यही हालत हम लोगों की है। भीतर हमारे प्रभु ने आनन्द का सागर भर रखा है, पर उस आनन्द के सागर में अज्ञानता की काई लगी हुई है इसलिए दिख नहीं रहा, समझ में नहीं आ रहा। और बाहर के विषयों में आनन्द का भ्रम है। सुख का भ्रम है। मानस 7/117/1,  जीव जो सहज ही सुखराशि था जिसके भीतर आनन्द-ही-आनन्द और सुख सब भरा हुआ था पर अज्ञा की परत के कारण दिखा नहीं। बाहर के विषयों में सुख का भ्रम हो गया, सो बाहर ढूँढने लगे। ये मिल जाये तो सुखी हो जाऊँ वह आ जा...

श्रीमद भगवत कथा हिंदी -16

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bhagwat-भागवत  [ भाग-16 ,part-16 ] कालेन तावद्यमुनामुपेत्य तत्रोद्धवं भागवतं ददर्श।  भगवान् के परमप्रिय महाभागवत सखा श्रीउद्धवजी से भेंट हुई, अरे ! भैया उद्धव बताओ कैसे हो? अनेकानेक प्रश्न कर दिये, भैया ! उस महाभारत का क्या हुआ? ये तो बताओ ! मैं तो छोड़कर ही चला गया था। और द्वारिका में कौन-कौन हैं? कैसे हैं? हमारे प्यारे प्रभु तो आनन्द के साथ हैं न? जब सभी की कुशलता के अनेक प्रश्न कर डाले, तो उद्धवजी के नेत्र बंद हो गये। विदुरजी बोले, क्या हुआ भैया? भगवान् के प्रेम में उद्धवजी की तो समाधि लगी जा रही है। जैसे-तैसे विदुरजी ने उन्हें सावधान किया, तब उद्धवजी होश में आये। _ शनकै गवल्लोकान्नलोकपुनरागतः।  भगवान् के ध्यान में उनके धाम को चले गये थे। लौटकर उद्धवजी पुनः अपने होश में आये और तब उद्धवजी ने पूरा समाचार विस्तार से विदुरजी को सुनाया, महाराज विदुर! आपको कुछ नहीं मालूम? अरे! महाभारत कब का सम्पन्न हो गया? पाण्डव विजयी हो गये और गोविन्द भी अपनी सम्पूर्ण लीला का संवरण करके परमधाम को प्रस्थान कर गये। धिक्कार है! जबतक प्रभु धराधाम पर रहे, कोई उनके स्वर...