sampurna bhagwat katha in hindi -19

sampurna bhagwat katha in hindi भाग-19 ,part-19 नाहं तथादिम यजमानहविर्विताने श्च्योतद्धृतप्लुतमदन्हुतभुङ्मुखेन । यद्ब्राह्यणस्य मुखतश्चरतोऽनुघासं तुष्टस्य मय्यवहितैर्निजकर्मपाकैः ॥ (भा. 3/16/8) भगवान् कहते हैं, वैसे तो ये दोनों ही मुख मेरे हैं। परन्तु दोनों में जितना कि ब्राह्मण मुख से पाकर मैं तप्त होता हूँ, इतना अग्नि के स्वाहाकार से प्रसन्न नहीं होता। स्पष्ट भगवान् ने कह दिया, घी से लबलवाया हुआ मालपुआ जब ब्राह्मण के मुख में जाता है, तो उसकी तृप्ति को देखकर मैं गद्गद् हो जाता हूँ, वह मेरा प्रत्यक्ष मुख है। बड़ी प्रशंसा भगवान् ने यहाँ पर ब्राह्मणों के लिये की। और सनकादियों को सम्मानपूर्वक नमन करके विदा किया। सनकादियों के शाप से वे ही भगवान् के पार्षद जय और विजय आज दिति माँ के गर्भ में आ चके हैं। ये सारा रहस्य ब्रह्माजी ने देवताओं को बताते हुए कहा, आप लोग घबड़ाइयेगा नहीं, भगवान् नारायण कृपा करेंगे। समय आने पर उनका उद्धार करेंगे। बाकि उनका सामना और कोई नहीं करने वाला। देवता बेचारे काल-प्रतीक्षा करने लगे। सौ वर्षों बाद दिति ने दो पुत्रों को जन्म दिया, ...