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Showing posts from June, 2020

sampurna bhagwat katha in hindi -19

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sampurna bhagwat katha in hindi भाग-19 ,part-19 नाहं तथादिम यजमानहविर्विताने श्च्योतद्धृतप्लुतमदन्हुतभुङ्मुखेन ।  यद्ब्राह्यणस्य मुखतश्चरतोऽनुघासं तुष्टस्य मय्यवहितैर्निजकर्मपाकैः ॥  (भा. 3/16/8) भगवान् कहते हैं, वैसे तो ये दोनों ही मुख मेरे हैं।  परन्तु दोनों में जितना कि ब्राह्मण मुख से पाकर मैं तप्त होता हूँ, इतना अग्नि के स्वाहाकार से प्रसन्न नहीं होता। स्पष्ट भगवान् ने कह दिया, घी से लबलवाया हुआ मालपुआ जब ब्राह्मण के मुख में जाता है, तो उसकी तृप्ति को देखकर मैं गद्गद् हो जाता हूँ, वह मेरा प्रत्यक्ष मुख है। बड़ी प्रशंसा भगवान् ने यहाँ पर ब्राह्मणों के लिये की। और सनकादियों को सम्मानपूर्वक नमन करके विदा किया। सनकादियों के शाप से वे ही भगवान् के पार्षद जय और विजय आज दिति माँ के गर्भ में आ चके हैं। ये सारा रहस्य ब्रह्माजी ने देवताओं को बताते हुए कहा, आप लोग घबड़ाइयेगा नहीं, भगवान् नारायण कृपा करेंगे। समय आने पर उनका उद्धार करेंगे। बाकि उनका सामना और कोई नहीं करने वाला। देवता बेचारे काल-प्रतीक्षा करने लगे। सौ वर्षों बाद दिति ने दो पुत्रों को जन्म दिया, ...

bhagwat katha in hindi भाग-20

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sampurna bhagwat katha in hindi ,भाग-20 कपिलोपाख्यान श्रीमद्भागवत में मनु-शतरूपा की तीन बेटियों का वंश पहले सुनाया गया, बेटों की बात बाद में की गई है। तीनों बेटियों में मझली बेटी देवहूति का विवाह कर्दमजी के साथ में हुआ। कर्दमजी ने विवाह के समय एक शर्त रखी कि एक संतान होते ही मैं विरक्त हो जाऊँगा। देवहूति ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया। हर्षोल्लासपूर्वक विवाह सम्पन्न हुआ। पुत्री से विदा लेकर माता-पिता तो अपनी नगरी को लौट गये, पर शादी होते ही कर्दमजी समाधि लगाकर बैठ गये। कई वर्षों तक अखण्ड समाधि लगी रही, तो देवहूति अपना सारा श्रृंगार उतारकर पति की सेवा में समर्पित बनी रही। कई वर्षों के बाद जब समाधि खुली कर्दमजी ने देवहूति को देखा। देवहूतिजी को देखकर कदमजी तो गद्गद् हो गये। तुष्टोऽहमद्य तव मानवि मानदायाः शुश्रूषया परमया परया च भक्त्या । यो देहिनामयमतीव सुहृत्स्वदेहो नावेक्षितः समुचितः क्षपितुं मदर्थे ॥  (भा. 3/23/7)  कर्दमजी बोले, हे मानवी! अरी मनुपुत्री! हम तेरी सेवा से बड़े प्रसन्न हुए। संसार में व्यक्ति को अपना शरीर सबसे ज्यादा प्यारा लगता है। पर तुमने तो म...